भारत में मुगलों ने करीब 331 सालों तक शासन किया है। मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी को हराकर बाबर द्वारा की गई थी, जिसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद शासक बदलते गए और भारत में मुगल साम्राज्य अपने पैर पसारता चला गया।
हालांकि, इतिहास की तारीख में वह दिन भी आया, जब भारत में हमेशा-हमेशा के लिए मुगल शासन समाप्त हो गया और सत्ता अंग्रेजी हुकूमत के हाथों में पहुंच गई। अंग्रेजों ने मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर-2 को दिल्ली से हिरासत में लेकर रंगून भेज दिया, जहां उन्होंने अपने जीवन के आखिर पल बिताए।
हालांकि, इससे पहले ही ब्रिटिश ने भारत के एक दरवाजे पर मुगलों के भविष्य का अंत कर दिया था। कौन-सा है वह दरवाजा, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
1857 की क्रांति से जुड़ी है घटना
यह बात तब की है, जब 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था। इस दौरान मेरठ से विद्रोहियों की टुकड़ी दिल्ली पहुंच गई थी। उस समय दिल्ली की गद्दी पर मुगल शासक बहादुर शाह जफर-2 थे। ऐसे में क्रांतिकारियों ने मुगल शासक को अपना सम्राट माना और क्रांति का नेतृत्व करने का आग्रह किया।
मिर्जा मुगल को दी गई जिम्मेदारी
बहादुर शाह जफर-2 ने अपने बड़े बेटे मिर्जा मुगल को विद्रोह का नेतृत्व करने का जिम्मेदारी दी और उन्हें कमांडर इन चीफ बनाया गया। इस दौरान उन्होंने कई अग्रेंजों को मारा। हालांकि, दिल्ली में हो रही लूटपाट से मुगल सम्राट नाराज थे। ऐसे में उन्होंने बाद में इसकी कमान बरेली से दिल्ली पहुंचे बख्त खान के हाथ में दे दी।
जब विलियम हडसन ने भिजवाई चिट्ठी
ब्रिटिश 20 सितंबर, 1857 तक दिल्ली में कब्जा कर चुके थे। ऐसे में वह लाल किला पहुंचे, लेकिन यहां मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर-2 अपने परिवार के साथ निकलकर हुमायूं के मकबरे में पहुंच गए थे। उस समय ब्रिटिश कमांडर विलियम हडसन को इस बात की सूचना खुफिया सूत्रों से मिली, जिसके बाद मुगल सम्राट को आत्मसमर्पण के लिए चिट्ठी भिजवाई गई। हालांकि, मुगल सम्राट ने इससे इंकार कर दिया। हडसन अपनी टुकड़ी के साथ लौट गए और दोबारा से आने की ठानी। हालांकि, इस बार हडसन की रणनीति अलग थी।
22 सितंबर, 1857 को हुआ अंत
ब्रिटिश कमांडर हडसन 22 सितंबर को 100 भारतीय सैनिकों के साथ हुमायूं के मकबरे पहुंचे और उन्होंने मुगल शासक बहादुर शाह जफर को आत्मसमर्पण करने पर जान से न मारने का आश्वासन दिया। इसके बाद उनके जफर के बेटे मिर्जा मुगल, मिर्जा खिज्र सुल्तान व पोता मिर्जा अबू बक्र भी दिल्ली के लिए चले। तीनों राजकुमारों की टुकड़ी के साथ हडसन चल रहे थे। लेकिन, जैसे ही काफिला दिल्ली के पास पहुंचा, तो हडसन ने तीनों को कपड़े उतारने के लिए कहा।
ब्रिटिश ने राजकुमारों से कीमती आभूषण व कपड़े ले लिए और हडसन ने अपनी रिवॉल्वर निकाली और तीनों को मौके पर ही गोली मार दी। इसके बाद तीनों के शवों को बैलगाड़ी में डालकर वही छोड़ दिया, जिससे दिल्ली शहर में लोगों में दहशत हो जाए कि दिल्ली में अब ब्रिटिश राज हो गया। कई दिनों तक तीनों के शव गेट के पास पड़े रहे।
इस जगह को आज खूनी दरवाजा भी कहते हैं, जो कि फिरोजशाह कोटला किले के ठीक सामने है। यह दिल्ली गेट के नजदीक है। वहीं, बहादुर शाह जफर को रंगून भेज दिया गया, जहां उन्होंने अकेले रहते हुए 7 नवंबर, 1862 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
उधर, दिल्ली में ब्रिटिश ने खूब लूटपाट मचाई और कई लोगों को मौत के घाट उतारा। दिल्ली में अगले कई दिनों तक मातम पसरा रहा और यहां की गलियां पूरी तरह से सुनसान हो गई थी। ब्रिटिश अधिकारियों ने दिल्ली में उन लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया था, जिनके ऊपर भारतीयों के साथ देने को लेकर संदेह था। पुरानी दिल्ली की हर गली में ब्रिटिश अधिकारियों का पहरा था और दिल्ली फिर से ब्रिटिश के कब्जे में आ चुकी थी।
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