कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 16 अगस्त 2021 को पूसा परिसर में राष्ट्रीय पौध आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीपीजीआर) में एक अत्याधुनिक बनाये गये राष्ट्रीय जीन बैंक का उद्घाटन किया. यह राष्ट्रीय राजधानी में स्थित दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जीन बैंक है.
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है कि देश का किसान खेती की हर चुनौती का मुकाबला करने में सक्षम है. हमारे किसान बिना किसी शैक्षणिक डिग्री के भी कुशल मानव संसाधन हैं. उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है.
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (@INbpgr ), पूसा, नई दिल्ली में आज विश्व के दूसरे सबसे बड़े नवीनीकृत-अत्याधुनिक राष्ट्रीय जीन बैंक का लोकार्पण कर राष्ट्र को समर्पित किया... pic.twitter.com/0wtLM03LEr
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) August 16, 2021
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीय जीन बैंक
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है कि बीजों के जर्म प्लाज्मा को माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर वर्षों तक सहेजा जा सकता है. बैंक में 10 लाख जर्म प्लाज्मा को संरक्षित रखा जा सकता है. फिलहाल 4.5 लाख जर्म प्लाज्मा संरक्षित हैं, जिनमें 2.7 लाख घरेलू प्रजातियों के हैं. बाकी दूसरे देशों से प्राप्त किए गए हैं.
यह दुनिया के दूसरे नंबर का बैंक
जापान के बाद यह दुनिया के दूसरे नंबर का बैंक है. इस अनूठे संस्थान में एक से बढ़कर एक वनस्पतियों के प्लाज्मा संरक्षित हैं. जरूरत के अनुरूप संरक्षित प्लाज्मा से जहां वनस्पति की संबंधित प्रजाति फिर से विकसित की जा सकती है, वहीं इनकी मदद से नई प्रजातियों का भी विकास संभव है.
किसानों की भलाई की लगातार चिंता
कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि हमारे किसान बिना किसी बड़ी शैक्षणिक डिग्री के भी कुशल मानव संसाधन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों की भलाई की लगातार चिंता रहती है और उनकी आय बढ़ाने के लिए अनेक योजनाओं के माध्यम से सरकार द्वारा ठोस कदम उठाए गए हैं.
किसानों को काफी फायदा
कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि ‘जर्मप्लाज्म’ के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं वाले नए जीन बैंक से खेतीहर किसानों को काफी फायदा होगा. एनबीपीजीआर देश में दिल्ली मुख्यालय और 10 क्षेत्रीय स्टेशनों के माध्यम से इन-सीटू और एक्स-सीटू जर्मप्लाज्म संरक्षण की आवश्यकता को पूरा कर रहा है.
पुरातन काल में साधन-सुविधाओं का अभाव
तोमर ने कहा कि पुरातन काल में साधन-सुविधाओं का अभाव था. ऐसी टेक्नोलाजी नहीं थी, लेकिन प्रकृति का तानाबाना मजबूत था. पूरा समन्वय रहता था, जिससे तब देश में न तो कुपोषण था और ना ही भूख के कारण मौतें होती थीं.
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